रविवार, 4 अगस्त 2013

     दोस्ती 


















दोस्ती वह बंधन नहीं है 
जो रिश्तों की डोर से बंधी होती 
न ही  सिमटी होती 
निश्चित दायरे में 
यह  निकलती है 
एक पतले धागे के रूप में 
मन के किसी कोने से 
और परत-दर-परत 
मोटी  होती जाती है 
अनगिनत अहसासों से 
जो महसूस किये जाते हैं 
किसी उस "अपने" से 
जिसके होते हैं हम "अपने"
अपना लिए जाते हैं 
जिसके हिस्से की खुशियाँ और गम 
जो दर्शाए नहीं जाते 
महसूस किये जाते  हैं 
कि भीड़ में से कोई कब 
अपना "अजीज" बन गया 
साथ ऐसे चल पड़ा कि 
दोस्त अपना बन गया …………।