बुधवार, 25 दिसंबर 2013

पापहारिणी सरोवर और मंदार पर्वत का अद्भुत स्वरुप


हाल ही में मैं किसी काम से बांका जिला जो भागलपुर से लगभग पचास किलोमीटर है, गई थी।  यही पर बौसी नामक स्थान पर मंदार  पर्वत और पापहारिणी सरोवर है। ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से सभी पाप धूल जाते हैं। सोंची मैं भी अपने  अबतक के सारे पाप धो ही लूँ। मेरे पति बोले लगता है आगे पाप करने का इरादा नहीं है................. मैं  बोली अब तक के पाप धो लेती हूँ आगे जब मुझसे पाप होगा तो फिर चले आयेंगे क्योंकि साधु लोग जब पाप करने से नहीं चूकते तो हम आम इंसान कैसे बचे रहेंगे , लेकिन सबसे मुख्य बात ये थी कि जिस सरोवर में हम अपना पाप धोने वाले थे वो इतना गन्दा था कि हाथ धोने का भी मन नहीं कर रहा था। किसी तरह जल हाथ में लेकर अपने ऊपर छिड़क लिए और अपने पाप अपने साथ वापस अपने घर लेते आये। 
                 दुःख इस बात का होता है कि प्रकृति ने जो उत्कृष्ट उपहार हमें प्रदान किया है उसे भी हम नहीं संभाल के रख रहे हैं , आखिर हम  इंसानों के कारण  ही ये सरोवर अपनी किस्मत पर रो रहा है। इतिहास की वो गाथा यहाँ सुप्त है जो सृष्टि की  रचना को स्पष्ट करती है और हमारे अस्तित्व का कारण  है। यही पर समुन्द्र मंथन हुआ था जिसका गवाह मंदार  पर्वत मौन रहकर भी कहानी को प्रमाणस्वरूप सुना रहा है।
                       समुन्द्र मंथन की कथा को प्रदर्शित करती झांकी 
 मंदार पर्वत की कहानी कहने से पहले मैं पापहारिणी सरोवर के मध्य में स्थित लक्ष्मी-नारायण मंदिर की  खूबसूरती दिखाना चाहती हूँ क्योकि यह  मंदिर और इसमें प्रतिष्ठित प्रतिमा अप्रतिम है और मैं बहुत ही प्रभावित हुई।  
                              लक्ष्मी - नारायण मंदिर 


                                  लक्ष्मी नारायण मंदिर 


अब मंदार पर्वत की  विशेषता बतलाती हूँ क्योकि इतिहास यहाँ प्रमाण के रूप में मौजूद है। समुन्द्र मंथन के समय यही मंदार मथानी बना था और शेषनाग इसके चारो ओर लिपटे हुए थे। आज भी ये निशान मंदार पर मौजूद हैं। 
                      मंदार पर्वत पर शेषनाग के लिपटने का निशान 


समुन्द्र मंथन से ही अमृत और विष दोनों प्राप्त हुए थे। विष तो भगवन शिव ने ग्रहण किया लेकिन अमृत के लिए देवता और दानव दोनों में  संघर्ष हुआ था और छल से देवताओं ने अमृत प्राप्त किया था। समुन्द्र मंथन के समय देवता लोग शेषनाग के पूंछ की  ओर  थे और दानव लोग मुख की ओर। ऐसी बुध्दिमानी देवताओं ने शेषनाग के विष से बचने के लिए किया था। 
             यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता मन मोह लेती है। बहुत ही मनोरम दृश्य है  साथ ही इतिहास की एक घटना का गवाह भी अतः मन में उत्सुकता थी इसे देखने की । सबसे ऊँची चोटी पर जैन मंदिर है जहाँ सीढ़ियों से जा सकते हैं।यहाँ भ्रमण का कार्यक्रम अद्भुत रहा। 


शनिवार, 16 नवंबर 2013

एक बूँद




एक बूँद  आँखों से छलका
 आँसू नाम दिया जग ने 
एक बूँद माँ की  आँखों में
 ममता नाम दिया जग ने          
एक बूँद विरहिन आँखों में
पीड़ा  नाम दिया जग ने
एक बूँद सीपी में गिरा जब 
मोती नाम दिया जग ने
एक  बूँद पत्तों पे दिखा तो
ओस की  बूँद कहा जग ने
एक  बूँद माथे से लुढ़का 

मेहनत नाम दिया जग ने
एक  बूँद बादल से गिरा तो
वर्षा नाम दिया जग ने
एक बूँद तो जल ही है
पर  अलग कहानी सबकी है
बूँदों  से रिश्ते बनते ही

हर बूँद का नाम दिया जग ने ................





सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

                     नमो की  हुंकार रैली और आम जनता के साथ  हादसा


किसे दोष दिया जाय रैली को या प्रशासनिक  विफलता को ? जो कुछ हुआ पटना में वह बहुत ही निंदनीय था। यदि विरोध ही करना था  आतंकियों को तो नरेंद्र मोदी को काले झंडे  दिखाते, विरोध प्रदर्शित करने के अन्य तरीके भी अपनाये जा सकते थे लेकिन मानवता का यह क्रूर रूप  क्या सही था? कई घरों के लोग घायल हुए और मर गए , हो सकता है कि वे रैली में जाने वाले नहीं होंगे , पर उनके साथ हादसा तो हुआ न। आतंक फैल जाने से रैली तो नहीं रुकी , यह भी लाभ हो सकता है कि नरेद्र मोदी और अधिक प्रसिद्ध हो जाएँ  लेकिन आतंकी के प्रति जनता की  सहानुभति तो नहीं पैदा हुई बल्कि नफरत की  आग और भड़क उठी , पुनः धर- पकड़ होने लगे , जो पकड़े  गए उनके प्रति जनता का मन उग्र ही हुआ।  मेरा मन बार-बार यही सोंचता है कि  कब वो दिन आएगा जब सभी आतंकी समाज की  तरक्की के बारे में सोचेंगे , राष्ट्र की उन्नति ही उनका मुख्य मकसद होगा ? 
               राजनितिक दल अपनी राजनितिक रोटियां सेंकने में लगे हैं और जनता जो झेल रही है उसका दर्द तो वही जानते हैं जिनके अपने  इस कांड के बाद उनसे सदा के लिए दूर हो गए। सत्ता बदलेगी या फिर नहीं ये तो  चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन कोई भी पार्टी ये दावा नहीं कर सकती कि उनके शासन में यह सब नहीं होगा। नरेन्द्र मोदी को सुनना बहुत लोग चाहते थे   क्योकि अधिकतर घरों के लोग  टीवी से चिपके ही रहे , गांधी मैदान की  भीड़ भी यही बता रही थी और यदि हादसा नहीं होता तो और भीड़ बढ़ ही जाती। आगे राजनीति में क्या होगा यह तो समय ही बतायेगा। 

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

लालू की विरासत

                                     लालू की विरासत 

लालू जी तो अब जेल से ही अपनी विरासत संभालेगे लेकिन उनके बिना उनकी पार्टी का क्या होगा ये तो सभी जानते हैं।  बिहार के लोग लालू राज का आनंद भोग चुके हैं और अब लगता नहीं, पुनः राबड़ी का आनंद लेंगे फिर भी सत्ता का सुख बड़ा ही प्यारा होता है तो जुगत तो लगानी  ही होगी उनकी पार्टी को क्योंकि  बहुत दिनों से कुछ भी नसीब नहीं हो रहा राजद नेताओं को , नितीश जी तो पूरी मुस्तैदी से विराजमान हैं। इधर रामविलास पासवान के पास तो गिनती के नेता हैं और वो भी पारिवारिक लोग ही , देखते हैं चिराग पासवान कौन सा तीर मारते  हैं बेचारे हीरो बनने गए थे वापस पिता की विरासत सँभालने आना पड़ा।  लालू तो अपने बेटे तेजस्वी को जनता के बीच नेता के रूप में प्रस्तुत कर चुके है , अब देखना ये है , माँ - बेटे मिलकर पार्टी की साख बचा पाते  हैं या नहीं। 

               अब तो लगता है देश में माँ-बेटे और बाप - बेटे की पार्टी रह गयी है क्योंकि उमर अब्दुल्ला और अखिलेश यादव तथा हेमंत सोरेन उदाहरण के रूप में हैं ही तो क्या राबड़ी भी सोनिया गाँधी की तरह सशक्त माँ बन पायेगी ? 

              फिलहाल तो लालू के जेल जाने पर खुशियाँ मनाने वाले भी बहुत हैं और दुःख मनाने वाले भी।  समय सारे सवालों के जबाब स्वयं देगा। अभी तो नमो की ताकत को देखना है। 

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

हिंदी हमारी शान है हिंदी पर अभिमान है

                हिंदी हमारी शान है हिंदी पर अभिमान है   

              माना कि अंग्रेजियत के आगे हिंदी बौनी होती जा रही है लेकिन  यह भी सही है कि आज भी अपने विस्तृत क्षेत्र में हिंदी शान से अपने पूर्ण स्वरुप के साथ दबंग बन जन - मानस के बीच  है।  गली  - मोहल्ले से लेकर चौपाल और चाय की दुकान से भीड़ भरे बाजार में कई स्वरूपों में आंचलिकता को स्पर्श करती हुई घूम रही है अंग्रेजी को चुनौती देते हुए। भले ही साहित्यिक मंडली  में हिंदी अपने सुन्दर शब्दों के साथ प्रस्तुत होती है और शब्दों को प्रयोग करने वाले विद्वान भी उसके प्रयोग से स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं लेकिन जहाँ साहित्य नहीं है वहाँ भी हिंदी अपने अलग स्वरुप में विद्यमान रहती है। क्षेत्रीय भाषाओं ने कभी भी हिंदी से प्रतिस्पर्धा नहीं की बल्कि उन्हें हिंदी के गले में सजी हार के रूप में देखा जा सकता है जो विभिन्न रत्नों के रूप में चमकती हुई हिंदी का मान बढ़ाती प्रतीत होती हैं। 
                   आम जनता के बीच सबसे अधिक समझी जाने वाली, बोली जाने वाली  भाषा हिंदी अपने देश में ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है क्योकि अंग्रेजी से कठिन मुकाबला है इसका तथा समाज के उच्च शिक्षित लोग अंग्रेजी को ही समर्थन दे रहे हैं। सरकार इसे राजभाषा तो मानती है लेकिन अधिक से अधिक काम अंग्रेजी में ही होती है। फिर भी अपनों से ही परायी होती जा रही हिंदी अपनी पहचान को बड़ी ही बुलंदी से कायम रखी है । 
                     हिंदी दिवस तो हर साल मनाये जाते हैं और सरकारी औपचारिकतायें पूरी होने बाद हिंदी पुन: अकेली हो जाती है पर उसके सच्चे साथी वे लोग हैं जो आज भी हिंदी पर गर्व करते है और गर्व से हिंदी बोलते हैं।  हिंदी हमारी शान है हिंदी पर अभिमान है।    

रविवार, 4 अगस्त 2013

     दोस्ती 


















दोस्ती वह बंधन नहीं है 
जो रिश्तों की डोर से बंधी होती 
न ही  सिमटी होती 
निश्चित दायरे में 
यह  निकलती है 
एक पतले धागे के रूप में 
मन के किसी कोने से 
और परत-दर-परत 
मोटी  होती जाती है 
अनगिनत अहसासों से 
जो महसूस किये जाते हैं 
किसी उस "अपने" से 
जिसके होते हैं हम "अपने"
अपना लिए जाते हैं 
जिसके हिस्से की खुशियाँ और गम 
जो दर्शाए नहीं जाते 
महसूस किये जाते  हैं 
कि भीड़ में से कोई कब 
अपना "अजीज" बन गया 
साथ ऐसे चल पड़ा कि 
दोस्त अपना बन गया …………। 



शनिवार, 13 जुलाई 2013

   पहचान 



नदी  में चंचलता थी
नवयौवना सी तीव्रता थी
इतराती , बलखाती
प्रेयसी बन उतावला थी



सागर की व्यग्रता
उसे बार - बार खीचती
उठती - गिरती लहरों से
आमंत्रित करती



नदी की चाल और तेज होती
धाराएँ  बदल वो दौड़ लगाती
अपनी ही धुन में भागती
सागर की आगोश में जा गिरती



सागर से मिल नदी
मौन हो गयी
प्रेम में पागल थी
प्रेम में विलीन हो गयी



पर अब भी नदी बेचैन थी
सागर के दिल में कैद थी
आकुलता - व्याकुलता
आंदोलित मन, नदी की चाहत
अपनी पहचान की तड़प
क्योंकि नदी अपनी पहचान
सागर से मिल खो चुकी थी| 

शनिवार, 15 जून 2013

कुछ किस्से ................

                                          कुछ किस्से ..................

काफी दिनों के बाद अपने ब्लॉग पर आ रही हूँ । शादियों का मौसम और रिश्तेदारों के यहाँ अगर नहीं जाएँ तो भला कौन ताने सुने वो भी खास रिश्तेदार हों तो और भी जरुरी हो जाता है शादी में शामिल होना । यही नहीं बहुत सारे काम भी जिम्मेदारी पूर्वक निभाने होते हैं । व्यस्त तो मै  अवश्य रही लेकिन कुछ मजेदार किस्से भी बटोर लायी हूँ  आप सभी के लिए।
                   पहला किस्सा ये रहा कि एक साइंटिस्ट दुल्हे के पिता ने मोटी रकम और महँगी गाड़ी के साथ दुल्हन को अपने घर लाये । खूब धूम-धाम से शादी हुई । शान था अधिक दहेज़ लेने का और बेटे की ऊँची कीमत का । दुल्हन घर तो आ गयी लेकिन शादी का जोड़ा खोल आग के हवाले कर दी । सिन्होरा जो सुहाग के सबसे प्रमुख  निशानी सिंदूर रखने वाला होता है , उसको भी आग के हवाले करने जा रही थी तभी लड़के की माँ की नजर पड़ी और वो उसे झपट कर छीन ली । बात यही तक नहीं रही , अब दुल्हन अपने कपडे खोलने लगी वो भी आँगन में जहाँ हलवाई  खाना बना  रहा था । आनन्-फानन में लड़की पर काबू पाया गया और उसे कमरे में बंद कर उसके घर फोन किया गया , पता चला उसकी दवा का असर खत्म हो गया था और इसे रोकने के लिए दवा देना जरुरी था । लड़की की हकीकत सामने आते ही लड़के की माँ रोने-पीटने लगी , सभी लोग हैरान हो गए । वास्तव में बिना किसी को बताये लड़की वालों ने धोखा देकर शादी कर दी और दहेज़ के लोभ ने लड़के वालों के आँखों पर पट्टी लगा रखी थी । बेचारा लड़का अपनी किस्मत को कोसता रह गया क्योंकि लड़की वालों ने उसे दहेज़ केस में फसाने की धमकी भी दे डाली है । वैसे गाँव के लोगों को यही बताया गया कि लड़की के ऊपर बुरी साया का प्रकोप है ।
                दूसरा किस्सा भी दहेज़ का ही है लेकिन लड़का और लड़की दोनों के परिवार संतुष्ट हैं बस बाराती वालों का स्वागत अच्छा से लड़की वालों ने नहीं किया क्योकि दहेज़ में इतनी रकम दे चुके थे की उनके पास पैसों की कमी हो गयी थी । मेरे विचार से इतना भी लड़की वालों को नहीं सताना चाहिए ।
             एक शादी ऐसी भी हुई  लड़का और लड़की दोनों के घरवालों ने मिलजुलकर खर्च किया , बहुत ही अच्छी शादी लगी मुझे ,जिसमे दहेज़ लेने वाले यदि शामिल हुए होंगे तो जरुर सीख  लेंगे कि बिना दहेज़ की शादी कितनी खुशीपूर्वक होती है । 
                हमारा समाज हमेशा बदलाव का पक्षधर रहा है और बहुत सारे लोग अब अपनी बेटियों की परवरिश बेटों की तरह कर रहे है साथ ही लड़के वाले भी दहेज़ के पुराने रिवाजों से निकलकर लड़की के परिवार को भी खूब महत्त्व दे रहे है लेकिन एक बात अक्सर सुनने को मिलती है ---------हम लड़के वाले है............तो लड़की वालों को झुक कर रहना चाहिए .........इत्यादि उलाहने और रिवाज आज भी कायम है , साथ ही लड़की जब पूरे  साजो-सामान के साथ ससुराल आती है तो उसका सम्मान भी खूब होता है । काश ! ये सब बदलाव भी हो .............

शनिवार, 11 मई 2013

           माँ 
 


माँ वो अहसास है 
जिसे अजन्मे ही
महसूस किया जाता है । 


माँ वो शब्द है 
जो जन्म से मरण तक 
होती है हमारे साथ । 


माँ वो राग  है 
जिसे किसी भी सुर में 
बाँधा नहीं जा सकता ।  


माँ वो स्पर्श है 
जिसे बंद आँखों से भी 
महसूस किया जाता है । 



माँ वो आवाज है 
जो कानो में पड़ते ही 
ताकत बन जाती है । 



माँ वो साथ है 
जो साथ न होकर भी 
हरपल होती है साथ ।  



शनिवार, 20 अप्रैल 2013

दर्द को बिखरने न दो

दर्द को बिखरने न दो   

 


रोक लो आँसुओं  को
बादल बन बरसने न दो
दर्द को अकेले ही पी लो
बाँट कर बिखरने न दो ।

यादों के झरोखों से
चुन लो वो ख़ुशी
पायी थी जो कभी
उसे ही भरपूर जी लो
सिमटने न दो ।

छिटकती चांदनी को
फैला आँचल समेट  लो
तिमिर की ओढ़नी में सजा
थोड़ी देर सहेज लो
निकलने न दो ।

उम्मीदों से भरे जीवन को
परखो कठिनाइयों से
पर न भूलो अपने अस्तित्व को
सघर्षरत पहचान बना लो
मिटने न दो ।  

दर्द को महसूस करो
थोड़ी देर जी लो
खुद को उसमे उलझने न दो
 दर्द को बिखरने न दो ।  



गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

माँ शक्तिस्वरुपिनी


              माँ शक्तिस्वरुपिनी 
 



नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ सभी को ..................हम सभी आज से चैत्र नवरात्री में माँ की आराधना करेंगे । माँ वो शक्ति है जो सभी मुसीबतों को स्वयं सह लेती है और हमारे लिए ढाल  बनकर खड़ी  रहती है । माँ का सर्वोत्तम रूप जननी का है और हर  काल  में वो  इस रूप में पूज्य रही है । वीर पांडवों को उनकी माता कुंती के नाम से कुंती पुत्र संबोधित किया जाता था जो माता की महत्ता को दर्शाता है । वीर हनुमान का एक अन्य नाम आंजनेय है जो उनकी माता अंजनी के नाम से ही पड़ा । प्राचीन काल से ही वीर पुत्रों को जन्म देने वाली माता समाज में पूजनीय रही है और उसका पुत्र अपनी माता के नाम से ही जाना जाता रहा है । भगवान  कृष्ण भी देवकीसुत और यशोदा नंदन के नाम से पूज्य हैं , उनका बीज मन्त्र -ऊं क्लिं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणम गता है और इस मन्त्र में उन्हें माता के नाम से ही संबोधित किया गया है । 
           भारतीय समाज प्राचीन काल से ही माता की महत्ता को सर्वोपरि मानता था, इसका प्रमाण सैन्धव घाटी सभ्यता से प्राप्त  मातरि देवी की मूर्तियों से मिलता है । ये मूर्तियाँ अत्यधिक मात्रा में वहां से मिली हैं जो यह स्पष्ट करती हैं कि वहां माता  के रूप की पूजा होती थी । ऋग्वैदिक समाज आर्यों का था और उन्होंने माता की शक्ति को महत्त्व देते हुए उनकी आराधना की है । आगे चलकर माता की प्रतिमाये उनके विभिन्न स्वरूपों को दर्शाती हुई निर्मित होने लगी । हमारा भारतीय समाज उनके नौ स्वरूपों की उपासना बहुत ही श्रद्धा और आस्था से करता है । उपवास और माँ की आराधना में शुद्धता का काफी ख्याल रखा जाता है और लोग आस्था के समंदर में  पुरे नौ दिन डुबकी लगाते  हैं । 
          माँ शब्द में जितनी शक्ति है उतनी शक्ति किसी भी शब्द में नहीं है । गांधारी वेशक अपने पुत्रों की करनी से दुखी थी लेकिन महाभारत युद्ध में उन्होंने अपने पुत्र दुर्योधन को वज्र बनाने के लिए अपनी सारी शक्ति प्रदान कर दी थी जो उन्होंने अपने तप से अर्जित की थी । माता के रूप में ही ये संभव था । 
                      हे माँ जगतजननी 
                     वरदायिनी , शक्तिस्वरुपिनी
                    कल्याणी , सबका  कल्याण कर दे 
                      विश्व  में शांति दे माँ शांति दे 

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

जागरूकता

                                                          जागरूकता 


हम महिलाओं का ध्यान भी  देश में राजनीतिक चालों की ओर  बरबस ही चला जाता है, क्योंकि जितनी चालें  हमारे पास हैं उतनी तो उनके पास बिलकुल नहीं हैं  हलाकि हम रोज रोज समाचारों में सब कुछ देखते-सुनते हैं लेकिन फिर अपने कामों में मशगूल  हो जाते हैं। अपने पसंदीदा नेता और पार्टी पर हमारा बयान  भी होता है , समर्थन  भी होता है लेकिन उसका परिणाम कुछ भी नहीं होता । नेताजी वादा तो अवश्य करते हैं लेकिन चुनावों के बाद भूल जाते हैं । यही सब तो होता है राजनीती में और हम भी उसमे बयानबाजी अपनी तरफ से जरुर करते हैं, भले ही वो बयान हमारे बीच ही रह जाती है ।
                 राजनीतिक चालों में नेताजी जरुर व्यस्त रहते हैं लेकिन आज की महिलाएं भी बहुत जागरूक हो गयी हैं। जब भी मौका मिलता है मुँह पर ही खरी-खरी सुना देती हैं और बेचारे नेताजी बगले झांकने लगते हैं । शिक्षित महिलाये तो सब कुछ समझती हैं और वक्त-वे-वक्त अपनी राय भी जाहिर करती हैं लेकिन अशिक्षित और पिछड़े तबके की महिलाएं भी खूब जागरूक हो गयी हैं । हर मुद्दे पर थोड़ी बहुत निगाह उनकी भी होती है और जो उनके लाभ का होता है उनपर टिका-टिप्पणी करने से बाज नहीं आती ।  मेरे पड़ोस में कुछ महिलाएं विधवा पेन्सन और वृद्धा पेन्सन उठाती हैं, जब भी उन्हें समय पर पैसा नहीं मिलता सरकार  को तो  खरी-खोटी सुनाती  ही है साथ ही नौकरशाहों को भी उनके कोप का भाजन बनना पड़ता है । मुझे उनके हौसले और जागरूकता को देखकर महसूस होता है कि वे हमसे भी कई कदम आगे हैं और हम कह सकते हैं कि हमारे  भारत की महिलायें अब  शक्ति के रूप में उभर कर आ रही हैं । हाल ही में एक महिला ने उसके साथ दुष्कर्म करने वाले शैतान को अपने ही घर में आग लगाकर मार डाला । आस-पड़ोस के सभी लोग उस महिला के साथ हैं भले ही पुलिस उसे पकड़कर ले गयी है । 
                 दिल्ली की दामिनी काण्ड ने इतनी जागरूकता फैलाई है कि अब किसी भी लड़की के साथ अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है और न ही उसे छुपाने की कोशिश की जा रही है । आवाज हर और से उठ रही है । घरों में उनकी आवाज दबाने वाले भी उनकी हिम्मत और जोश के आगे नतमस्तक हो गए हैं  और जो हाथ उनकी ओर धमकाने को उठते थे , वो अब सहारा भी बनने लगे हैं । जागरूकता इसी को तो कहतेहैं ।    

सोमवार, 11 मार्च 2013

मेरी बगीया  में कुछ यूँ आया वसन्त 

अनेको रंगों से सजा मनोरम 

पीले रंगों की मोहक अदा 


 

 रंग वासंती की अलग सुंदरता 


ये सब मेरे पति का प्यार है जिसे उन्होंने मेरे बगिया में सजाया है हमारे लिए और मैं ये सुन्दर तस्वीर अपने ब्लॉग में पोस्ट कर रही हूँ .............

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013



 

जिंदगी के सपने  

 चंदा से पूछकर
चांदनी चुरा लायी हूँ
घरौंदे में सजाकर
रौशनी फैलाई  हूँ। 

बादलों को रोककर
अभी अभी तो आयी  हूँ
जो आये वो तो
बरसने को बोल आयी  हूँ। 

चमन की हर कली  से पूछकर
अनेकों रंग लायी हूँ
भरके जिंदगी में उनको
वसंत - बहार लायी हूँ .

समय से पूछकर 
कुछ पल चुराके लायी हूँ
जो जी लूँ इसमें तो
अनमोल सुख मैं पायी हूँ। 

हया से पूछकर
लाली प्रेम की लायी हूँ
अधरों पे सजा के
प्रेमगीत गायी  हूँ .

पिया के प्रेम में रमकर
जोगन बन आयी  हूँ
डूबके गहराईयों में
प्रेमरस पायी हूँ। 


सपने मैं सजाकर  
जिंदगी की आयी  हूँ 
खुशियाँ हो बसंती 
ख्वाहिशें सजायी  हूँ। 












  

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

हर ओर रंग ही वासंती 


















पिया वसंत जो आ गए 
सज गयी रंगों में प्रकृति 
पीले सरसों के खेत में
दिखी है वासंती ओढ़नी
पगडंडियों से गुजरती
ऋतुराज की प्रेयसी
बेखौफ, मदमस्त बहती
बयार ये वसंती
अमराइयों से झाँकती
मंजरियाँ डोलती
कुहू ........कुहू  गा उठती
रह - रह के कोयल प्रेमगीत
सोलहो श्रृंगार से सज 
नववधू मन मोहती 
मधुमास में पिया वसंत संग 
हर ओर रंग ही वासंती .................


गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013


 प्रेम का अहसास 
 

जो सुरूर छाया  हमपे 
मदहोश हो गए हम 
ख़ामोशी उनकी  समझी 
कि उनके हो गए हम ...........

जो बादलों से पूछी 
क्यों मस्त चल रहे वो 
तो मस्तियों से समझी 
धरती से मिल चुके वो ...........

जो गुनगुनाता भौरा 
खामोश हो गया तो 
फिर चमन ने समझा 
मदहोश हो गया वो ...............
 
जो ऋतु वसंत आया 
कोयल ने तान छेड़ी 
अमराइयों ने समझा 
कि प्रेम में वो डूबी .....................


बुधवार, 23 जनवरी 2013

ख़ामोशी एक कहानी है 


ये न सोंचो कि  शब्द बनते नहीं 
तो मुखरित क्या होंगे 
भावनाएँ होती नहीं 
तो महसूस  क्या होंगी 
मन सोंचता नहीं 
तो कहानी जन्म कैसे लेगी 


ख़ामोशी यूँ ही नहीं होती 
उसके पास शब्द भी हैं 
भावनाएँ भी  होती 
 मन तो उड़ान में 
न जाने कहाँ - कहाँ होता 
तो कहानी स्वयं ही बन जाती 
पर बोलती हैं नजरें 
समझ कर तो देखो 
ख़ामोशी एक कहानी है । 


उस  गूंगी लड़की की बोलती  नजरों को देखकर .......................

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

इतिहास की धरोहर विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष

                इतिहास की  धरोहर विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष

भारत प्राचीन काल से ही शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विख्यात रहा है । प्राचीन तक्षशिला विश्वविद्यालय के समान ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय का इतिहास रहा है । भागलपुर (बिहार ) जिले  से कुछ ही  दूरी पर अन्तिचक  नामक स्थान है और यहीं पर है प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष । भारत यदि विश्व गुरु बना है तो उसका श्रेय यही विश्वविद्यालय रहा है ।
                 भले ही इतिहास  यहाँ  सो रहा है  लेकिन इसका हर कोना  प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन , अतिश , रत्नव्र्ज आदि  के व्याख्यानों  की कहानी  कह  रहा है । विदेशों से विद्यार्थी ज्ञान की प्राप्ति  हेतु यहाँ पधारे  और बहुत   कुछ  धरोहर के रूप में यहाँ से ले गए । तिब्बत , चीन , नेपाल , श्रीलंका आदि देश के विद्यार्थी यहाँ शिक्षा प्राप्त करने हेतु आते थे ।  
 
      इसकी आधारशिला आठवीं सदी  में  पाल  शासक धरमपाल ने  रखी थी । अनेकों विहार  का निर्माण उसके द्वारा यहाँ करवाया गया जहाँ विद्वानों के व्याख्यान होते थे ।  महाविहार का  प्रबंध महास्थविरों की एक परिषद् करती  थी । राजकीय अनुदान से सम्पूर्ण प्रबंध किया जाता था ।

                     महा विहार में प्रवेश हेतु विद्यार्थियों को  प्रवेश  परीक्षा उतीर्ण  करना पड़ता  था । यह परीक्षा  6   द्वार पंडितों   द्वारा  ली   जाती  थी  जिनके नाम मिलते हैं - पूर्वी द्वार  आचार्य रत्नाकर शांति , पश्चिमी द्वार वागीश्वरकीर्ति , उतरी द्वार  नरोपा , दक्षिणी द्वार प्रज्ञाकरमति , प्रथम मध्य द्वार कश्मीर के रत्न्व्र्ज तथा द्वितीय   मध्य द्वार गौड़ के ज्ञान श्री मित्र ।  संभवतः यहाँ 6 महाविहार थे । प्रत्येक के अलग द्वार पंडित होते थे । द्वार पंडित के पद पर बहुत ही विद्वान आचार्य को  नियुक्त किया  था।  प्रत्येक महाविहार में शिक्षकों की संख्या 108  होती थी । इस तरह वहां लगभग 648 शिक्षक थे और छात्र भी हजारों की संख्या में थे ।
                      यहाँ एक  विशाल  पुस्तकालय था जिसे मुस्लिम आक्रान्ताओं ने  नष्ट  कर दिया  और  हम अपनी  विरासत  को नहीं  बचा सके ।  यहाँ के खंडहरों में जो कहानी छुपी है वो हमारे गौरवपूर्ण अतीत को स्पष्ट करती है । हमारी  शिक्षा व्यवस्था कितनी समृद्ध थी इसकी कहानी यहीं आकर ज्ञात हो सकती है । यह  महाविहार   दर्शन ,  न्याय, व्याकरण , तंत्र विद्या का प्रमुख केंद्र  था । बौद्ध धर्म  की वज्रयान  शाखा की शिक्षा मुख्य रूप से यहाँ दी जाती थी । वज्रयान शाखा का  उद्भव  यहीं हुआ था और  यहीं  से विश्व में फैला । चित्रकला  की  शिक्षा भी  यहाँ  दी जाती थी ।
                           यहाँ पर छात्रों को प्रमाण - पत्र भी प्रदान किया जाता था और इसके लिए   उत्सव  का   आयोजन किया जाता था । इस अवसर  पर पाल राजा भी उपस्थित होते थे और छात्रों को पुरस्कृत करते थे । यही  के  आचार्य  आतिश  ने तिब्बत में जाकर बौद्ध धर्म की स्थापना की और  यहाँ के धर्म गुरु के रूप में ये आज भी पूज्य हैं, चुकि ये विक्रमशिला विश्वविद्यालय  से  गए थे इसलिए तिब्बत के लोग यहाँ की भूमि को पूज्य मानते हैं ।  तिब्बती भाषा की शिक्षा यहाँ जाती थी तथा  कई संस्कृत ग्रंथों का  तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था। ये ग्रन्थ आज भी तिब्बत में विद्यमान हैं ।
                          यहाँ  के अवशेष आज भी अपने  वैभवशाली अतीत  की कहानी बता रहे हैं ।