सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

माँ तो सभी रूपों में सिर्फ माँ होती है .........


                    
                 माँ तो सभी रूपों में सिर्फ माँ होती है .........


             
          पूरा देश माँ की आराधना में निमग्न हो रहा । माँ ही वो शक्ति है  जो  जीवन देती  है और उसकी रक्षा भी करती है । कहा भी जाता है कि पूत तो कपूत हो जाता है लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती । इसी तरह की एक माता अपने कपूत को सपूत बनाने की युद्ध लड़ रही थी । सपने तो उसने भी देखे होंगे  जब उसकी  में  गोद में छोटा सा फूल पुत्र के रूप में खिला होगा , कुल का नाम रोशन करेगा , वारिश होगा खानदान का और बन के बुढ़ापे की लाठी सहारा होगा । माँ अपनी परवरिश में कुछ भी कमी नहीं करती पर वो क्या जानती थी कि उसका पूत बुरी संगतों में पड़कर कपूत बनता जा रहा है और उसके सारे सपने बिखरते जा रहे हैं ।
              आये दिन माँ से पैसे के लिए मारपीट करता क्योंकि नशे की लत में पूरी तरह जकड चुका  था । माँ से तो वो तभी दूर हो चूका था जब घंटों मोबाईल से अपनी प्रेमिका से बातें करता था । उसके पास समय ही कहाँ था माँ के लिए । माँ का पल्लू पकड चलनेवाला प्रेम रोग में ऐसा जकड़ा कि रोक-टोक करने वाली माँ पूरी तरह खलनायिका नजर आने लगी थी । माँ के दिल को तसल्ली थी कि चलो प्रेमरोग है कोई गलत आदत नहीं पर प्रेम में धोखा भी मिलता है । जब धोखा मिला तो नशे की लत लग गयी , वो भी इतना कि उसे शक्ति ही नहीं थी कि माँ को आवाज देकर बुला सके । हर पल बेसुध पड़ा इन्सान कैसे किसी को पहचान सके ।
               अब वो हिम्मत कर चुकी थी यमराज से लड़ने के लिए । संघर्ष की एक-एक सीढियों पर  चढ़ने के लिए माँ तैयार थी , नशे रूपी राक्षस को वो एक - एक कर मारती  जा रही थी, उसमे वो हिम्मत थी कि यमराज को भी पीछे हटना पड़ा । बेटा पुनः एक नए रूप में माँ के सामने खड़ा था , वो जंग जीत  चुकी थी क्योंकि इतनी शक्तिशालिनी सिर्फ माँ होती है.............माँ तो सभी रूपों में सिर्फ माँ होती है .........

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

आरोप-प्रत्यारोप की घिनौनी राजनीति

                       आरोप-प्रत्यारोप की घिनौनी राजनीति 





एक - दूसरे के खिलाफ बयानबाजी , आरोपों - प्रत्यारोपों  से भरी भारतीय राजनीति  किस ओर जा रही है, ,पता नहीं । इन दिशाहीन राजनीतिज्ञों ने भारतीय राजनीति  को बिल्कुल गन्दा कर दिया है । हर कोई इसी तलाश में है कि उसके विरोधी के खिलाफ कुछ सबूत  मिल जाय और उसकी लुटिया राजनीति में डूब जाय , खूब छीछालेदर हो तथा राजनीति के शिखर से ऐसा निचे गिरे कि जनता के सामने मुँह दिखाने के लायक न रहे ।
              वास्तव में आज किसी को भी दूध का धुला नहीं कहा जा सकता है । राजनीति में अपनी पहुँच बनाते ही दो कौड़ी के नेताजी अरबों के मालिक बन बैठते हैं । परिवार का रहन-सहन , घर-मकान सभी कुछ आलिशान । पैदल चलने वाले नेताजी के पाँव अब जमीं पर नहीं पड़ते और उनके परिवार वाले चाँदी  काटतें हैं सो अलग ।
              नेताजी के सरकार में आते ही उनके समर्थक लाभ लेने के लिए हर जुगत भिड़ाते रहते हैं और अगर नेताजी इससे मुकर गए तो समझो अगला चुनाव उनके लिए भारी पड़  गया । हर हाल में उन्हें भी जुगत भिड़ानी पड़ती है और उनकी यही जुगत यदि विरोधी के हाथों लग गयी तो नेताजी जनता के आगे रोज - रोज नई -नई कहानियों के साथ बेपर्दा होते जाते हैं । इस काम में मीडिया की भूमिका सबसे अहम् हो जाती है, क्योंकि मसालेदार न्यूज को कितने मसाले और डालकर जनता के सामने परोसना है ये बखूबी आता है उन्हें ।
             भले ही अरविन्द केजरीवाल पोल खोल की राजनीति में लगे हैं , लेकिन जब वे जनता के पास वोट मांगने जायेंगे तो जनता भी उन्हें महात्मा बनाकर पूजने वाली नहीं है । वही दौर शुरू  होगा फिर से जब उन्हें वोट दिलाने वाले, उनके सत्ता में आते ही लाभ कमाने के लिए चक्कर काटने लगेंगे । न चाहते हुए भी उन्हें कहीं  न कहीं कुछ कदम बढ़ाने  ही पड़ेंगे और यदि अनजाने में भी कोई गलती हुई तो फिर से उनकी भी वही हालत होगी , जहाँ से उठे थे वहीं धड़ाम से गिरना पड़ेगा ।
                      अतः देश को यदि आगे बढ़ाना है और राजनीति करनी है तो उन रास्तों पर बढ़ना होगा जिससे देश की तरक्की हो । किसने क्या किया, यदि हम यही सोंचते रह गए तो देश का क्या होगा?