माँ तो सभी रूपों में सिर्फ माँ होती है .........
पूरा
देश माँ की आराधना में निमग्न हो रहा । माँ ही वो शक्ति है जो जीवन
देती है और उसकी रक्षा भी करती है । कहा भी जाता है कि पूत तो कपूत हो
जाता है लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती । इसी तरह की एक माता अपने कपूत को
सपूत बनाने की युद्ध लड़ रही थी । सपने तो उसने भी देखे होंगे जब उसकी
में गोद में छोटा सा फूल पुत्र के रूप में खिला होगा , कुल का नाम रोशन
करेगा , वारिश होगा खानदान का और बन के बुढ़ापे की लाठी सहारा होगा । माँ
अपनी परवरिश में कुछ भी कमी नहीं करती पर वो क्या जानती थी कि उसका पूत
बुरी संगतों में पड़कर कपूत बनता जा रहा है और उसके सारे सपने बिखरते जा रहे
हैं ।
आये दिन माँ से पैसे के लिए मारपीट करता क्योंकि नशे की लत
में पूरी तरह जकड चुका था । माँ से तो वो तभी दूर हो चूका था जब घंटों
मोबाईल से अपनी प्रेमिका से बातें करता था । उसके पास समय ही कहाँ था माँ
के लिए । माँ का पल्लू पकड चलनेवाला प्रेम रोग में ऐसा जकड़ा कि रोक-टोक करने
वाली माँ पूरी तरह खलनायिका नजर आने लगी थी । माँ के दिल को तसल्ली
थी कि चलो प्रेमरोग है कोई गलत आदत नहीं पर प्रेम में धोखा भी मिलता है ।
जब धोखा मिला तो नशे की लत लग गयी , वो भी इतना कि उसे शक्ति ही नहीं थी कि
माँ को आवाज देकर बुला सके । हर पल बेसुध पड़ा इन्सान कैसे किसी को पहचान
सके ।
अब वो हिम्मत कर चुकी थी यमराज से लड़ने के लिए । संघर्ष की एक-एक सीढियों पर चढ़ने के लिए माँ तैयार थी , नशे रूपी राक्षस को वो एक - एक कर मारती जा रही थी, उसमे वो हिम्मत थी कि यमराज को भी पीछे हटना पड़ा । बेटा पुनः एक नए रूप में माँ के सामने खड़ा था , वो जंग जीत चुकी थी क्योंकि इतनी शक्तिशालिनी सिर्फ माँ होती है.............माँ तो सभी रूपों में सिर्फ माँ होती है .........