शनिवार, 10 दिसंबर 2011

वह औरत है 
भोर की पहली किरण 
खोल देता है 
रात का आवरण,
पर छुपे हुए रहस्य 
दफन हैं अभी भी 
उसके हृदय में ,
कि रात में वह बेचैन थी ,
सपनो की दुनिया में कैद थी ,
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए .


उसकी यही दुनिया होती,
पर सुबह होने से पहले ही 
वह पुन: लौट आती है ,
पूर्ववत स्थिति में,
वह जानती है ,
कि  पहली किरण के
दस्तक देने के पूर्व 
उसे समर्पित हो जाना है,
स्वनियोजित कार्यक्रम में 
औरों के सुख के लिए,
खोना है अपनों में,
भले ही ये अपने 
उसके दर्द को न समझे,
पर वो दर्द सहती है,
इन्ही अपनों के लिए 
और खोयी रहती है ,
चूल्हे-चौके में .


सबकी इच्छाओं कि पूर्ति के बीच 
कबकी भूल जाती है वह,
अपनी इच्छाएं , आकान्छाएं,
प्यार और झिड़कियों के बीच 
एक सामंजस्यता,
यही उसकी दिनचर्या है ,
क्योंकि  वह औरत है 
कई रिश्तों में बंधी . 






 








रविवार, 20 नवंबर 2011

      पुनः भारतीय महिला की कामयाबी के चर्चे 

                           डॉ. टेसी थोमस नाम है उनका और मिसाइल वुमन के नाम से प्रसिद्ध हो चुकी हैं. घर-घर में चर्चे हो रहे हैं और पूरा  विश्व देख रहा  है  पुनह एक भारतीय महिला की कामयाबी और हौसला सवित हो चूका है की हम किसी से कम नहीं बस मौके तलाश होती है और हम महिलाएं खुद को सावित करने में पीछे नहीं होती. 
                           वो भी तो एक माँ हैं अपने बेटे तेजस की अत: गृहस्थी भी अपनी जगह सही होनी चाहिए क्योंकि बच्चे को माँ से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. यदि इस मोर्चे पर खरा उतरना है तो यहाँ भी समय देना होगा लेकिन अपने गुरु और देश के प्रति भी उनकी जबाबदेही थी तो उन्होंने वहां भी उपस्थित होकर अपने कर्तव्य को पूरा किया तभी तो दुनिया उन्हें मिसाइल वुमन के नाम से पुकारती हैं .
                            कठिनाइयाँ तो जरुर होंगी पर कदम नहीं रुके संभवतः उनका संबल बन हौसला बढ़ाये. हमें गर्व है देश की ऐसी महान महिला पर  जिन्होंने महिलाओं का सर गर्व से ऊँचा उठा दिया.ईश्वर उन्हें और तरक्की दे और हमारा देश पुनः देश की नारी पर गर्व करे.

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

                                       मानवता क्या मर चुकी है ?
मन व्यथित हो गया आज समाचार पढ़ कर. क्या एक पिता इतना क्रूर हो सकता है और वो बहन कैसी है जो अपनी ही बहन का पति उससे छीन ली. यह कहानी नहीं है बल्कि एक सच्ची घटना है जो हमारे ही बीच की है. भागलपुर से थोड़ी ही दुरी पर है सुल्तानगंज, जहाँ से पवित्र  गंगाजल भरकर बाबा वैद्य नाथ को चढ़ता है, यह घटना उसी सुल्तानगंज की है. ये पवित्र नगरी सुनैना की दुखभरी दास्ताँ की गवाह भी बन गयी . सुनैना जो पति से उपेछित होकर माता-पिता के पास आई . माँ तो जल्द ही उसे अकेले छोड़ कर भगवन के पास चली गयी पर उसके पिता ने जो किया वो मानवता और पिता दोनों के नाम पर कलंक है. 
                    मानसिक संतुलन खो चुकी वह पिता के द्वारा १० वर्षों से कैद रही. ऐसा कहा जाता है कि उसकी भाभी के डर से उसके पिता ने उसे बंद रखा पर क्या वो समाज के और लोगों से मदद नहीं ले सकते थे और वो बहन जो सुनैना के पति के साथ ही अपनी गृहस्थी  चला रही है , क्या उसे अपनी बहन की सुध नहीं लेनी चाहिए . रिश्ते जहाँ मर चुके थे तो समाज ने क्या किया ? वह भी तो उसे १० वर्षों से कैद में देख रहा था. आज मिडिया ने बात क्या उठाई कि सबके सब राग आलापने लगे. हर कोई अपने विचार दे रहा है पर पता नहीं उसे लाभ भी मिलेगा या फिर से वो छली जाएगी. 
                 काफी पहले इसी तरह कि घटना सिवान जिले कि लड़की और गोपालगंज जिले कि बहु के साथ भी हुई थी जो ससुराल के अत्याचार से पागल हो गयी थी. उस समय मै भी अपनी बुवा के द्वारा उसकी मदद कि पहल कि थी जिसके बदले मेरी बुवा को उन ससुरालवालों से भला बुरा भी सुनना पड़ा.
               आज पुनः यह घटना सुनकर मानवता को मरते देख बड़ी तकलीफ होती है.
                    

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

                                       हमारे त्यौहार और हमारी सोंच

काफी वयस्तता के बीच नवरात्री की धूम रही और अंत में माँ दुर्गा की अश्रुपूर्ण विदाई के बाद का खालीपन , यही है जिन्दगी का रंग . पुनः एक स्फूर्ति के साथ दीपावली की तैयारी में व्यस्त हो जाना और जीवन को भरपूर जीना. भारतीय त्योहारों की विशेषता अनोखी है. हमारे त्यौहार हमें जोड़ते हैं और अपने देश की परम्परा को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने  के लिए सचेत भी रहते हैं . रावन को जलाने की एक परम्परा चल रही है जो अगली पीढ़ी तक कायम रहेगी और आगे भी जाएगी. हम जिन बुराइयों को समाप्त करना चाहते हैं उसे  रावन के माध्यम से मर डालने की कोशिश करते हैं. 

                       मजे की बात ये है कि परम्पराओं के माध्यम से हम राजनीती से लेकर सामाजिक बुराइयों तक कटाच करते हैं और समाज के सामने सच प्रस्तुत करते हैं. हमारा ये प्रयास अवश्य ही सुधारात्मक होता है और इसके पीछे यह मनसा होती है कि समाज में बदलाव आये. 

                        आब हम लच्क्ष्मी माता  के आगमन कि तैयारी करेंगे और प्रकाश के द्वारा जीवन का अंधकार भगाने का प्रयत्न करेंगे . ईश्वर करे इस त्यौहार में सबके जीवन में प्रकाश फैले.


रविवार, 25 सितंबर 2011

      औरतों के  लिए लोकतान्त्रिक देश बेहतर 


यह विचार है अन्तराष्ट्रीय  पत्रिका ''न्यूजवीक'' का जिसने महिलाओं  की प्रगति पर अपनी वश्विक  रिपोर्ट जारी   की  है. रिपोर्ट   से अलग हटकर अगर देखा जय तो ये बिलकुल  सही  है कि महिलाएं   आगे   बढ़  रही हैं और  दे  रही हैं चुनौतियाँ  कि ''अब  हमारे  कदम  रुकने वाले  नहीं  हैं, रोक  सको  तो रोक लो . '' समय   तो काफी  लगा संघर्षमय जीवन  को  तराश  कर  अपनी पहचान बनाने में लेकिन जब पहचान बनी तो उभर  कर आई राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , विदेशमंत्री  , अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष  की अध्यक्छ  जैसे  विशिष्ट  पदों के रूप में. अनेकों महिलाओं ने ''स्वय्मसिद्धा''  बन कर  अपने सामर्थ्य  का लोहा समाज से मनवा दिया .

कितना समय और कितनी आलोचनाएँ सहनी पड़ी होंगी  पाकिस्तान की विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार को यहाँ तक पहुँचने में क्योंकि वो ऐसे देश का प्रतिनिधित्व करती हैं जहाँ औरतों पर जुल्म जग जाहिर है और सामाजिक  मान्यता उन्हें  बच्चे पैदा करने वाली मशीन से अधिक कुछ नहीं समझता है . फिर भी उन्होंने समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत कर अन्य महिलों के लिए भी रास्ता खोल दिया है . समाज की सोंच बदलने पर मजबूर कर दिया है. 

न्यूजवीक ने चाहे जैसे भी अपनी रिपोर्ट तैयार की हो लेकिन महिलएं किस तरह तरक्की कर रही हैं , यह रिपोर्ट तो उनके पास है जो महिला हैं और जो रिपोर्ट का हिस्सा बने या न बने लगातार बाधाओं  को पार करने में मशगुल हैं. 

कौन जनता था की 50 प्रतिशत आरक्षण  मिलने के बाद बिहार में महिलाओं का राज होने लगेगा . मुखिया के पद जहाँ पुरुषों के लिए निश्चित थे वहां महिलाएं शोभायण होंगी . येही है बदलाव  जो शहरी के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अधिक रूप से हो रही है और लोकतंत्र को मजबूत कर रही हैं .

लैंगिक भेदभाव ने यहाँ दम तोडना शुरू कर दिया है और विकाश अपनी गति पर है . उन पिछड़े तबके की लड़कियां  भी साईकिल से स्कुल जा रही हैं जो कभी खेतों और घरों के काम तक ही सिमित थी . जो समाज उन्हें घर की चाहरदीवारी में कैद रखता था , आज वाही समाज उन्हें स्कुल जाते, नौकरी करते बड़े गर्व से देख रहा है और अब चर्चा का विषय उनके बढते कदम बन गए  हैं. सास बहु की shikayten दम तोड़ रही हैं और बन  रहा है एक नया अध्याय जो rajniti से लेकर व्यापर  और गृहस्थी को भी एक नए आयाम के रूप में प्रस्तुत कर रहा है.


बुधवार, 14 सितंबर 2011

                     हिंदी दिवस के बाद 

काफी धूम- धाम से मन हिंदी दिवस. लम्बे-लम्बे भाषण चले, अनेकों दावे हुए , हिंदी को अंग्रेजी से बचाने की शपथ ली गयी और साथ में गीत संगीत के कार्यक्रम भी हुए लेकिन अगले दिन से फिर वाही दिनचर्या. बिना गुड मोर्निग के सुबह नहीं होती और टा-टा...... बाई-बाई.........के बिना बच्चे भला स्कूल कैसे जाते . प्रणाम...........नमस्कार आदि पुराने और देहाती टाइप के जो लगते हैं. 
           मेरी दीदी अंग्रेजी सीखने के लिए दछिण भारतीय किसी महिला को टीचर   राखी है क्योंकि उसके बच्चे उसे हिंदी बोलने पर खूब चिढाते हैं . लड़कियां अंग्रेजी बोलने का क्लास कर रही हैं क्योंकि ससुराल वाले अंग्रेजी बोलने वाली बहु चाहते हैं. अब  तो घर की काम वाली भी टूटी-फूटी अंग्रेजी ही सही लेकिन बोलती जरुर है. 
         ये भी सही है की समय की मांग है अंग्रेजी और पूरी दुनिया जब  ग्लोबल विलेज बन गयी है तो ऐसे में अंग्रेजी मुख्या संपर्क की भाषा बन गयी है . अतः आज के अनुसार चलने के लिए अंग्रेजी अनिवार्य बन गयी है और ese सीखना और बूलना गलत नहीं है फिर भी अपनी मात्री भाषा  की उपेच्छा नहीं करनी चाहिए. भले हम बाहर अंग्रेजी बोलें  लेकिन  अन्य जगह हिंदी और बिंदी दोनों की पहचान होनो चाहिए . सिर्फ हिंदी दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा. हमें हिंदी का प्रयोग सभी जगह करनी चाहिए और खासकर बच्चों को अधिक हिंदी का अभ्यास कराना चाहिए तभी हमारी हिंदी अपने गौरव को प्राप्त कर सकती है .

बुधवार, 7 सितंबर 2011

                      नेताओं का जेल जाना

   रेड्डी बंधुओं के बाद अमर सिंह भी जेल पहुँच गए . पहले से तो वहां और भी दिग्गज विराजमान हैं ही , अमर सिंह के आ जाने से रौनक और भी बढ़ गयी  होगी. बेचारे सर्कार बनाते बनाते खुद ही अपने ही खेल में फँस गए. कभी राजनीती में अमर सिंह की तूती  बोलती थी और अब शायद जेल में बोलेगी. 
             अन्ना  हजारे  को कुछ  तो संतुष्टि हुई  होगी  भले  ही पिक्चर अभी  बाकी है लेकिन  पिक्चर  का ये  नजारा  भी काफी  दिलचस्प  है. सरकार को  बिहार  के नितीश जी से सीख लेनी चाहिए, उन्होंने  आय से  अधिक सम्पति के  मामले में सील की गयी प्रशासनिक अधिकारी  वर्मा के आलिशान मकान को स्कूल खोलने के लिए दे दिया और एक नया उदाहरण समाज के सामने पेश किया. 
              मै तो यही चाहती हूँ कि सभी सरकारें इस कदम को उठायें और  भ्रष्टाचार में लिप्त  लोगों को सबक सिखाये. विद्या मंदिर बनकर उनकी पाप की सम्पति कम से कम कुछ तो पुण्य देगी और पीढियां उनसे सबक भी लेंगी.
                      जनता जग चुकी है. अन्ना के आन्दोलन के  समय ही हमने भारतीय एकता का जो स्वरूप देखा वही काफी है ये  बताने के लिये  कि जनता अब चुप नहीं बैठेगी , तो नेताओं के  साथ अब उनकी भी बारी है जो अब तक परदे में हैं.
 

शनिवार, 20 अगस्त 2011

                    जनता जाग चुकी है 
       अन्ना रामलीला मैदान पहुँच चुके हैं और जनता उनका जोश बन चुकी है. सरकार ये नहीं सोंच पाई थी कि जनता का इतना समर्थन अन्ना को मिलेगा और पूरा देश उनके साथ उठ खड़ा होगा. राष्ट्रीय एकता की मिशाल स्पष्ट दिखाई दे रही है.  जब देश की बात आती है तो कैसे सारा देश एक हो उठता है, आज दुनिया देख रही है. अनेकता में एकता  है हमारे हिंद की visheshta जो आज bharshtachar ke mudde par dikhai दे रही है.
                         आज जो मुद्दा उठा है वो नया नहीं  है, नया है जनता   की etni  अधिक जागरूकता जो पहले नहीं थी या फिर aanna  जैसे बुजुर्ग को देख जनता में हिम्मत  आ गयी सरकार से मुकाबला करने की. 
                            एक बात साफ हो चुकी है कि देश की युवा शक्ति सबसे अधिक जागरूक है और हम sabhi  जानते है, भारत में सबसे अधिक युवा है. 

बुधवार, 17 अगस्त 2011

                         अन्ना की गूंज  

सरकार ये नहीं सोंच   पाई  थी कि अन्ना आंधी बन कर आयेंगे और जनता तूफान बनकर उनके साथ होगी.  पता नहीं क्या सोंचकर सरकार ने उन्हें  गिरप्तार कर  लिया और अच्छी बन रही कांग्रेस की इमेज ख़राब हो गयी . राहुल गाँधी ने काफी मेहनत कर जनता के बीच अपनी jagah थी  jo ab kapil sibbal के karan dhumil हो रही है.  tim अन्ना के साथ देश है और सरकार  को जनता की aavaj के saath chalna hoga.  मै to अन्ना के saath  hun और aap bhi अन्ना के  saath हो bhrashtachar मिटाने का sankalp le. 
 
 

शनिवार, 6 अगस्त 2011

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मंगलवार, 2 अगस्त 2011

parinda: आधुनिकता की दौड़ और लड़कियों का पहनावा  समय के स...

parinda: आधुनिकता की दौड़ और लड़कियों का पहनावा
समय के स...
: "आधुनिकता की दौड़ और लड़कियों का पहनावा समय के साथ बदल चुकी हैं लड़कियों की स्टाइल और उनका पहनावा. समाज की सोंच उसे नैतिकता और अनेकता की ..."

शनिवार, 23 जुलाई 2011

                  घूस लेने को क़ानूनी मान्यता 

अब ये विचार दिए जा रहे हैं कि घूस लेने को क़ानूनी मान्यता मिले, क्योंकि  इससे घूस लेने और देने दोनों की चोरी-छिपे क्रियाकर्म  बंद हो जाये यानि जो शर्म बन  जाता था वो शान बन जाये . शर्म भी बड़ी अजीब होती है क्योंकि इसे  परदे की भी जरूरत होती  है पर जब इसे बेपर्दा किया जायेगा तो हो सकता है ये कुछ समय की मांग करे. समय तो लगेगा ही अपने वास्तविक रूप से बाहर निकलने में .
                           ये विचार दिया जा रहा है की क़ानूनी मान्यता मिलने से लोग घूस लेने की शिकायत पुलिस में बिना किसी डर और भय के करेंगे और तब इस पर अंकुश लगाया जा सकता है पर क्या पता ये कोई नया रूप ले ले . आखिर उपरी कमाई है बंद थोड़े ही होगी. 
                         बचपन में माँ को जब कोई काम कराना होता था तो घूस देती थी वो भी ये कि '' तुझे चौकलेट देंगे '', और चोरी इस बात की थी  कि सिर्फ  मुझे ही मिलेगा. एक बार चाचा का  प्रेमपत्र  पहुँचाने पर भी घूस मिला था लेकिन मै भी बार-बार और घूस की मांग करती और नहीं देने पर दादा से शिकायत की धमकी देती . 
                          वाह रे घूस तेरे कितने रूप हैं और जब तुझे मान्यता मिलेगा तो और निखर जाएगी. आगे देखते हैं तू कौन सी करामात करती है.

सोमवार, 18 जुलाई 2011

bihar ko mile vishesh darja

aneko kathinaiyon ke baad bihar aaj punh khada hai aur tarakki ki rah par chal pada hai lekin aur adhik tarakki ke liye ese thode share ki jarurt hai . jharkhand se alag hone ke baad bihar ke hisse me badh aur naxli hamle ke siva kuch nahi mila. 

रविवार, 19 जून 2011


सब कुछ बीत गया, अन्ना हजारे का अनशन फिर बाबा रामदेव का बहुचर्चित अनशन . लाठियां चली , भगदड़ मची, पुलिस की झूठी दलील तो मीडिया की पोल खोलती रिपोर्ट . सरकार की जिद और तानाशाही तथा बिरोधी पार्टी का मुद्दा लपकना . इन सब के बीच भी कुछ हुआ वो था एक संत का बिना किसी तामझाम का अनशन और एक सबसे अच्छी मुहीम के लिए अपनी बलि देना. स्वामी निगमानंद ने अनशन के द्वारा जो अपनी बलि दी , काश हम उसे समझ पाते . एक संत ने वह भागीरथ प्रयास किया जो बिना किसी हो हल्ला का था शायद इसीलिए किसी ने उनकी सुध नहीं ली और जब सुध ली गयी तब तक वे जा चुके थे पर उनका सपना अधुरा रह गया . मै इसमे मीडिया को भी दोष देती हूँ क्योंकि रामदेव और अन्ना के अनशन को तो उसने प्रमुखता से प्रचार किया लेकिन क्या उसे निगमानंद के अनशन को अनदेखा कर देना चाहिए था. लोकतंत्र का चौथा  स्तम्भ क्यों यहाँ पीछे रह गया? क्या उस संत का मौन समर्पण ही इसका कारन था? भगत सिंह की वो बातें याद आती हैं जब उनहोंने कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए जोर से आवाज करनी चाहिए . पर इस संत ने चुपचाप ही जनता के सामने गंगा मुक्ति का अभियान रख दिया . नमन है इस संत की.

शनिवार, 11 जून 2011

           चुनौती 
फिर उम्मीद टूटी 
निराशा  जाग उठी 
अँधेरा बढ़ता गया
दिए की एक लौ  ने    
चुनौती दी कि आगे बढ़ो 
मुकाबला करना होगा
अँधेरे को भागना होगा
तू डर मत 
है कठिन पल 
अकेले का सफर 
कठिन है डगर 
फिर भी रख हिम्मत 
ऐ निराश मन 
चल उठ बढ़ 
मंजिल अभी दूर है 
तो तुझमे भी जुनून है
रख हिम्मत निडर बन 
बढ़ा कदम 
तू जीत जायेगा 
अँधेरा भाग जायेगा 
अब मिलेगी रौशनी  जो 
साथ देगी उम्र भर 
जीत जा तू यह चुनौती 
यह चुनौती, यह चुनौती .
      

शुक्रवार, 27 मई 2011

                नीचता की हद पार कर गया अमेरिका 

यह कोई पहली बार नहीं है कि अमेरिका ने हमें अपमानित किया लेकिन यह मुद्दा मानवाधिकार आयोग के पास जाना चाहिए क्योंकि इसमे एक अठारह साल कि लड़की कृतिका के साथ ऐसी बदसलूकी कि गयी जो मानवता के खिलाफ है . उसे हथकड़ी लगा कर उसके साथियों के सामने जेल ले जाया गया और उसके घर वालों को भी खबर नहीं दी गयी. वह कोई साधारण लड़की नहीं थी फिर भी भारतीय दूतावास में स्थित उसके पिता सूचना नहीं दी गयी, क्यों ? उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और बाथरूम तक नहीं जाने दिया गया. अंत में वह सबके सामने ही वह काम की जो इतनी बड़ी लड़की के लिए कितनी शर्मनाक हुई होगी. क्या यह मानवाधिकार का उलंघन नहीं है?
                        हम सभी भारतीयों को इसका हर माध्यम से विरोध करना चाहिए और अमेरिका को धिक्कारना चाहिए. जिस मानसिक दौर से कृतिका गुजारी होगी वह कितना भयावह होगा. उसे इंसाफ कैसे मिलेगा?

रविवार, 15 मई 2011

बाईस लाख में दूल्हा बिका  और दुल्हन----------

वाह रे समाज और यहाँ बसे लोभ , हम तरक्की कर मंगल पर निवास करने की सोंच रहे है पर क्या वहां भी दहेज़ के लिए हम मुंह बाए खड़े रहेंगे? काफी व्यथित कर गया मुझे यह समाचार जो मेरे पड़ोस का ही है. बेचारा दूल्हा बलि का बकरा बन गया.
                          हुआ ये की लड़का बैंक में पीओं  है और उसके लिए रिश्ते भी अनेक आये. पता नहीं उसकी किस्मत में क्या लिखा था कि घरवालों कि लालची नियत ने उसे दहेज़ कि मंदी में बेंच दिया, कीमत लगी बाईस लाख और बेचारा हलाल हो गया .
                       बात येही तक नहीं रही , बारात शान से निकली तथा दुल्हन अगले दिन ससुराल आई, पर हाय रे किस्मत लड़के की भी नीलम हो गयी. ससुराल में आकर वो छत से कूदने लगी, बाल नोचने लगी और जो कोई  उसके पास आता उसे काटने लगती. इधर रिसेप्सन की तैआरी और  उधर दुल्हन की बीमारी यानि पागल लड़की से पैसे का लालच देकर शादी कर दी गयी और धन के लोभ में लड़का पछ यह भी नहीं जान पाया की लड़की पागल है, तो अब यह दोष किसका है और लड़का बेचारा क्या करे?
 

शनिवार, 26 मार्च 2011

जीवन को  रंग से भर दो, प्यार में डुबकी लगा लो,  बड़ा आनंद आयेगा, खुशियाँ भर जाएँगी गोद में और मन हमेशा एक  नयी आशा से भर जायेगा. सब कुछ अच्चा लगने लगेगा. हमेशा अपने लिए जीते हो कभी औरों के लिए तो जी कर देखो, जीवन में एक नयी अनुभूति भर जायगी. तो आवो  चले कुछ नया करने.

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

आज ब्रिज में होली है रे रसिया -------------सचमुच होली में कान्हा और राधा को याद नहीं किया गया तो होली अधूरी  है. यह प्रतीक है प्रेम का , आसक्ति का और एक दूसरे में खो जाने का. कान्हा में राधा का और राधा में कान्हा का. अपने प्रियतम को रंगे बिना तो होली बिलकुल सूनी है क्योंकि यहाँ  प्रेम बिना बोले ही सबकुछ बोल जाता है. इस फाग में यदि प्रियतमा अपने प्रियतम को एक नजर भर देख लेती है तो वह रंगों के तालाब में मन ही मन डुबकी लगाने लगता है . बस यही तो है उसकी होली . 
                प्रेम रस तो बच्चों में भी चढ़ता है पर थोडा अलग रूप में . उनकी पिचकारी ने जिसे रंगा बस उनकी होली का रंग और गहरा हो गया और ख़ुशी इतनी कि प्रकृति भी पगला जाती है. तो सबको होली की शुभकामना. 

शनिवार, 12 मार्च 2011

जीवन में सुख 
क्यों री कोयल 
तुम फिर कूकने लगी
                     अमराइयों  में ,
मदमस्त बावरी सी 
अपने प्रियतम ऋतुराज 
                 वसंत को रिझाने में,
सुध-बुध खोयी तुम 
फिरती हो इधर-उधर चंचल सी 
कुहुक-कुहुक उठती हो छिपकर
                  मंजरियों में 
तुम जानती हो तेरा प्रियतम 
पुन: चला जायेगा तुम्हे छोड़कर 
                 इन्ही फिजाओं में 
तब तुम प्रेमोन्नत हो 
मौन हो जाओगी पुन: उसके
                 विरह में 
फिर भी जी लेना चाहती हो तुम 
एक-एक पल अनुरक्त होकर 
एक सीख  देती हुई 
कि जीवन में सुख है
               थोड़ा पाने में.

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

क्या हुआ कि नदी सुख कर 
दुबली होती जा रही,
क्या हुआ कि धरती 
आग भी उगलती जा रही ,
क्या हुआ कि मेघ 
रूठकर चलते बने ,
क्या हुआ कि हवा 
आंधी बनकर जाग उठी 
क्या हुआ कि सागर 
क्रोध में बौरा गया ,
क्या हुआ कि आदमी 
अपना ही दुश्मन  बन रहा ,
क्या हुआ कि प्रेम की
दुश्मन ही प्रेम बन रही ,
क्या हुआ कि ...........

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

                         आओ चलें गणतंत्र दिवस है 
चारो ओर गणतंत्र दिवस की तयारी हो रही है. खासकर स्कूलों में काफी उत्साह है. अच्छा लगता है बच्चों का उत्साह देखकर और याद आ जाता है अपना दिन. देश भक्ति गीतों से मान में रोमांच भर जाता था. हम भी काफी तैयारी करते थे इस दिन की लेकिन समय के साथ जो बदलाव आया है वह मन को ब्यथित कर देता है. लोगों में अब गणतंत्र दिवस के लिए औपचारिकता मात्र रह गयी है. हाँ वैसे लोग भी हैं जो आज भी देशप्रेम से भरे हैं और इस दिन का सम्मान करते हैं पर यह भी सही है कि बहुत सारे लोग इस दिन छुट्टियाँ मनाने बाहर चले जाते हैं . उनके लिए यह दिन कोई महत्व नहीं रखता और कई तो यह भी नहीं जानते कि इस दिन का क्या महत्व है. जिस तिरंगे के लिए हमारे देश के वीरों ने अपनी जान गवां दी और यातनाओं को हँसते हँसते सहे,  उस तिरंगे को बस हमें संभालकर सम्मान से रखना है. क्या हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम भी अपना योगदान दें और देश के लिए थोड़ा समय निकालकर अपने तिरंगे को सलामी दें. बस हमारा थोड़ा सा समय हमारी अगली पीढ़ी के लिए एक सीख होगी कि वे भी हमारी परम्परा को आगे बढ़ाएं . यह तिरंगा हमसे कुछ नहीं मांगता बल्कि हमें ही पहचान देता है कि हम भारतीय हैं, तो हमें भी उसके सम्मान के लिए स्वेच्छा से आगे बढ़ना होगा . हमारा यह कदम मात्र सरकारी आदेश न हो बल्कि हमारी स्वयं कि इच्छा हो. तो आओ कदम बढ़ाएं और तिरंगे और हमारे संविधान के सम्मान में खुद को भी शामिल होने का गर्व प्राप्त करें .

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

                                             हैप्पी मकरसंक्रांति 
 नये साल में हिन्दू धर्म का पहला त्यौहार . १४ जनवरी को यह पर्व एक तरह से फिक्स हो गया है . हिन्दू  पंचांग के अनुसार इस साल १५ जनवरी को यह पड़ता है लेकिन अधिकतर लोग  आज ही मना रहे हैं. मेरे आस - पास तो आज ही मनाया जा रहा है. ये लोग कह रहे हैं कि करना क्या है, गंगा में डुबकी लगाना है और दही-चूरा खाना है तो आज हो या कल , क्या फर्क पड़ता है.
              इस साल की ठंढ  ने हाड़ कंपा दी है . कई बुजुर्ग तो भगवान के प्यारे हो चुके हैं और कई इस इंतजार में हैं की कब उनका बुलावा आता है. हमारे बिहार के मुख्यमंत्री की माँ भी इसी ठंढ में उन्हें छोड़ कर चली गयी . हर साल ठंढ में  मै कम्बल दान करती हूँ और सबसे पहला कम्बल मेरे घर की पुरानी काम वाली को देती हूँ. हमलोग उसे दादी कहते हैं. अब वो काम नहीं करती है लेकिन अक्सर हमारे घर आती रहती है और हम उन्हें हमेशा कुछ न कुछ  देते रहते है. इस बार काफी  दिन से दादी नहीं आई थी और सब ने येही मान लिया था की वो मर गयी होगी लेकिन आज जब दही चूरा लेने वो पहुंच गयी तो सब की आँखे फटी की फटी रह गयी. "अरे ! बुढ़िया अभी जिन्दा है ." सबके मुंह से यही निकला . मैं पूछी कि "दादी अबकी ठंढा भी डरी गेले तोहरा से ". दादी की पोपली हंसी ने पुनह रोमांच भर दिया और सूरज भी उनका साथ देने के लिए मेरे आँगन में झाँकने लगे , धूप अच्छी रही आज .

शनिवार, 1 जनवरी 2011

                      शब्द तो है लेकिन वाणी नहीं है 

काश कि वक्त ठहर पाता. बहुत सारी उम्मीदे थी लेकिन अधूरी रह गयी. पता नहीं क्यों समय को भागने नहीं देना चाहती . संभव तो नहीं है यह सब फिर भी कुछ शिकायतें रह जाती हैं . मैं खुद से हमेशा यही  बोलती हूँ  कि  ए जिन्दगी तु आगे बढ़ रास्ते और भी हैं . मंजिलें और भी हैं . एक  कदम आगे तो बढ़ा. मंजिल जरुर मिलेगी. 
                      उम्मीदों के साथ नए साल का स्वागत करने मैं भी पहुँच गयी वहां जहाँ लगी थी बच्चों की कला की प्रदर्शनी . काफी अच्छा लग रहा था मुझे लेकिन एक बच्ची की कला ने मुझे वही तक सीमित कर दिया जहाँ वो थी. मै पूछ उठी कुछ अपनी पेंटिंग के बारे में तो बताओ . कागज पर वह लिखती है "शब्द तो बहुत हैं  पर वाणी नहीं है." मेरी नजरें उसके चेहरे पर ही टिक गयी लेकिन वह न तो विचलित हुयी और न ही उदास. समझौता  कर  चुकी थी खुद से . उसकी हिम्मत ने मुझे नयी उर्जा से भर दी कि बुलंद हौसले सफलता कि नयी कहानी जरुर लिखते हैं .